सामान्य होने के बचाव में
(यह लेख "In Defense of Being Average" का अनुवाद है। अपशब्दों के लिए क्षमा कीजीए, अनुवाद के से सत्यनिष्ठ रहने के लिए करना पड़ा। पर अंग्रेज़ी में यह सब चलता है। :D )
एक बंदा है। जाना माना अरबपती। तकनीकी प्रतिभा वाला। आविष्कारक और उद्यमकर्ता। पुष्ट और प्रतिभाशाली और ऐसे कटे जबड़े के संग ऐसा रूपवान कि लगे ज़ूस ने औलम्पस से नाचे आकर साले को तराशा हो।
इस बंदे के पास तेज़ चलने वाली गाड़ियों का एक जत्था है, कुछ आलीशान नौकाएँ है, और जब वह दान में लाखों डौलर नहीं दे रहा होता, तो वह अप्सरा सी प्रेमिकाएँ बदल रहा होता है, जैसे लोग अपने मोज़े बदलते हैं।
इस बंदे कि मुस्कराहट पूरे कमरे को पिघला सकती है। इसकी मोहकता इतनी गाढ़ी है कि आप उसमें तौर सकते हैं। उसके आधे दोस्त टाईम के “वर्ष का श्रेष्ठ आदमी” रह चुके हैं। और जो नहीं थे वो चिंता नहीं करते क्योंकि अगर वह चाहें तो उस पत्रिका को ही खरीद सकते हैं। और जब यह बंदा हवाई विश्व यात्रा नहीं कर रहा होता है या विश्व को बचाने के लिए कोई नया तकनीकी आविष्कार नहीं कर रहा होता है, तो यह अपना समय निर्बल और असहाय और पददलितों की सहायता करने में लगाता है।
यह बंदा, तुमने सही पहचाना, ब्रूस वेन है। जिसे बैटमैन भी कहते हैं। और (रहस्य खुलने की चेतावनी) इसका कोई अस्तित्व नहीं है। यह कृत्रिम है।
यह मानव स्वभाव का एक रोचक पहलू है कि हमें इन कृत्रिम नायकों को बनाने की एक ज़रूरत सी है जो निपुणता के अवतार हों और वो सब हों जो हम बनना चाहते हैं। मद्धयकाल के योरोप में ड्रैगन मारने और राजकुमारियों को बचाने वाले शूरवीरों की कहानियां हैं। प्राचीन रोम और ग्रीस में ऐसे नायकों के मिथक हैं जिन्होंने अकेले ही जंग जीती है और कुछ किस्सों में तो खुद देवताओं का सामना किया है। हर दूसरी मानव संस्कृति में ऐसी विचित्र कहानियां बरी पड़ी है।
और आजकल, हमारे पास चित्रकधाओं के महानायक हैं। सूपरमैन को ही ले लीजिए। मेरा मतलब, यह बंदा नीली पोशाक पर लाल चड्डी पहने मनुष्य के शरीर वाला एक देवता ही है, मूलतः। वह अक्षय और अपराजेय है। और उसकी शारिरिक सहनशक्ति जितनी तगड़ी बस उसकी मानसिक सहनशक्ति ही है। सुपरमैन की दुनिया में, न्याय हमेशा काला या सफेद ही है, और सुपरमैन कभी सही काम करने से नहीं घबराता। कुछ भी हो जाए।
मुझे नहीं लगता कि मैं मनोविज्ञान के विषय को हिला कर रख दूंगा यह कह कर कि, मनुष्य होने के नाते, अपनी निर्बलता की भावनाओं का सामना करने में मदद करने के लिए हमें इन नायकों का निर्माण करने की ज़रूरत है। इस धरती पर 7.2 अरब से अधिक लोग हैं, और एक समय पर उन में से करीब 1,00 का ही दुनिया भर में कोई प्रमुख प्रभाव होता है। जो बीकी 7,199,999,000 +/- हम बचे हैं उन्हें अपने जीवन की सीमाओं से और इस सच से समझौता करना पड़ेगा कि ज़्यादातर जो हम करेंगे उसका हमारे मर जाने के काफी समय बाद कोई प्रभाव नहीं होगा। इसे सोचना और स्वीकारना मज़ेदार चीज़ नहीं है।
आज, मैं “ज़्यादा बनाओ, ज़्यादा खरीदो, ज़्यादा चोदो” की संस्कृति से हटना चाहता हूँ और उबाऊ होने, औसत होने और सामान्यता के फायदों का तर्क देना चाहता हूँ।
ध्यान रहे, सामान्यता को लक्ष्य बनाने के नहीं – क्योंकि हम सब को जितना हो सके उतना बेहतर करने की कोशिश करनी चाहिए- पर, सामान्यता को स्वीकारने के फायदों का, जब हम अपनी अच्छी से अच्छी कोशिशों के बाद भी वहीं रह जाएं।
वक्र के पीछे
जीवन में हर चीज़ एक समझौता है। हम में से कुछ का जन्म शैक्षिक अधिगम की उच्च अभिरुचि के साथ होता है। औरों का जन्म होता है उच्च शारीरिक कौशल के साथ। कुछ पुष्ट होते हैं। कुछ कलात्मक होते हैं। कुछ खरगोश की तरह चोद सकते हैं, बिना पसीने के एक बूंद बहाए। कौशल और प्रतिभा के मामले में, इनसान बदबूदार जानवरों का एक कतई विविध समूह है। ज़रूर, जो हमें अंत में जीवन में मिलता है वह हमारे अभ्यास और मेहनत पर ही निर्भर करता है, पर हम सब अलग-अलग अभिरुचि और क्षमताओं के साथ जन्मे हैं।

यह एक घंटीनुमा वक्र (बेल कर्व) है। तुम में से कोई अगर किसी सांख्यिकी की कक्षा में गया है और बच गया है तो वह इसे पहचान लेगा।
घंटीनुमा वक्र काफ़ी आसान है। लोगों की एक जनसंख्या लो, जैसे, कहो वो सब लोग जो साल में कम से कम एक बार गौल्फ खेलते हैं। क्षैतिज अक्ष बताता है कि वह गौल्फ में कितने अच्छे हैं। एकदम दाईं और होने का मतलब वो बहुत अच्छे हैं, और एकदम बाईं और होने का मतलब वो बहुत खराब हैं।
अब, ध्यान दो कि यह वक्र दोनों छोर पर पतला हो जाता है। इसका मतलब है कि बहुत कम लोग हैं जो बहुत अच्छे हैं या बहुत खराब हैं। और बहुत ही कम लोग जो बहुत ही खराब हैं। अधिकांश लोग साधारण मध्य में हैं।
हम एक “वक्र” को इस तरह कई चीज़ों की जनसंख्या पर लगा सकते हैं। कद। वज़न। भावावेश की परिपक्वता। वेतन। लोगों को कितना अकसर चोदना पसंद है। और ऐसे ही और कुछ।1
उदाहरण के लिए, यह है माईकल जोर्डन बास्केटबौल को डंक करते हुए:

यह प्रसिद्ध है कि ये यह करने वालों में सर्व-श्रेष्ठ हैं। इसलिए, ये घंटीनुमा वक्र के कतई दाईं और है, जिन्होंने कभी भी बास्केटबौल डुबाई उन्में से 99.99% से बेहतर। कुछ ही बराबरी कर सकते हैं।

और फिर यह बंदा है:

बेशक, यह कोई माईकल जौर्डन नहीं है। बल्कि, संभावना है कि यह पढ़ रहे कई लोग इससे बेहतर कर सकते हैं। इसका मतलब ये संभवतः घंटीनुमा वक्र के निचले छोर पर है, दूसरी तरफ के चरम पर।

हम सब काफ़ी औसत है ज़्यादातर चीज़ों में
हम सब की अपनी-अपनी ताकतें और कमज़ोरियाँ होती हैं। पर सच यह है, हम में से ज़्यादातर लोग जो हम करते हैं उसमें काफ़ी औसत हैं। अगर तुम सही में किसी एक चीज़ में बेहतरीन भी हो – कहो गणित, या रस्सी कूदना, या बंदूकों का काला धंधा करके पैसे कमाना – संभावना है कि तुम बाकी लगभग सभी चीज़ों में औसत या औसत से कम हो। यह बस ज़िंदगी का स्वरूप है। किसी चीज़ में सही में महान बनने के लिए , तुम्हें उसमें समय और ऊर्जा लगानी पड़ेगी। और क्योंकि हम सब के पास समय और ऊर्जा सीमित है, हम में से कुछ ही सही में एक से ज़्यादा चीज़ में असाधारण बन पाते हैं, अगर कुछ भी बने तो।
तब हम कह सकते हैं कि यह संपूर्ण सांख्यिकी असंभावना है कि कोई एक इनसान अपने जीवन के सभी पहलुओं में बेहतरीन होगा, या फिर, कई पहलुओं में भी। ब्रूस वेन वास्तविक नहीं है। ऐसा होता ही नहीं है। कामयाब व्यवसायी अधिकतर अपनी निजी ज़िंदगी की लगवा कर बैठे होते हैं। बेहतरीन खिलाड़ी ज़्यादातर मस्तिष्कखंडछेदित पत्तर के समान मूढ़ और मूर्ख होते हैं। संभवतः अधिकतर हस्तियाँ जीवन के बारे में उतनी ही अनभिज्ञ हैं जितने कि वो लोग जो उन्हें ताणते हैं और उनका हर चाल का पीछा करते हैं।
हम सब, अधिकांश, काफ़ी औसत लोग हैं। वह जो चरम पे हैं उनका ही प्रचार होता है। हम सब को कुछ-कुछ अंतर्ज्ञान से पता है, पर हम बहुत कम ही इसके बारे में सोचते और/या बात करते हैं। हम में से अधिकतर कभी असाधारण नहीं होंगे, किसी भी चीज़ में। और यह ठीक ही है।
यह एक अहम बिंदू की और लेके जाता है: कि सामान्यता, लक्ष्य के तौर पे, बेकार है। पर सामान्यता, फलस्वरूप, ठीक है।
हम में से बहुत कम को यह पल्ले पड़ता है। और हम में से और कम इसे स्वीकार कर पाते हैं। क्योंकि मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं – गंभीर, “भगवान, जीने का क्या मतलब है” तरह की मुश्किलें – जब हम असाधारण होने की अपेक्षा करते हैं। या बदतर, हमें लगता है कि हम असाधारण होने के हकदार हैं। जब की वास्तविकता में, यह एक दम व्यवहारिक या संभावित नहीं है। हर माईकल जौर्डन या कोब ब्रायंट के लिए, 1 करोण उद्यानों में भटकते हुए छोटे मोटे खेल खेल रहें हैं ... और हार रहे हैं। हर पिकास्सो या डाविंची के लिए अरबों मूर्खों ने प्ले-डोह खाया है और रंग बिखेरे हैं। और हर लियो मादरचोद टोलस्टोए के लिए, बहुत से, वैसे, मेरे जैसे, लिख रहें हैं और लेखक बनने का नाटक कर रहे हैं।
अपवाद की संस्कृति का अत्याचार
तो मुश्किल यह है। मेरा तर्क है कि हमारी यह अपेक्षा, इतिहास के किसी भी समय से ज़्यादा, आजकल है। और उसका कारण हमारी तकनीकी और आर्थिक सुविधा के पर्यावरण की वजह से है।
इंटरनेट, गूगल, फेसबुक, यूट्यूब और 500+ टेलिविज़न के चैनल होना बेहतरीन है। हमारे पास इतिहास के किसी भी समय से अधिक जानकारी की पहुँच है।
पर हमारा ध्यान सीमित है। ऐसा कोई तरीका नहीं है कि हम किसी एक समय में इंटरनेट से बहने वाली जानकारी के ज्वार की लहरों को संसाधित कर पाएँ। इसलिए हमारा ध्यान खींचने और भंग करने वाले बस वास्तव में अपवादी जानकारी के टुकड़े होते हैं। 99.999 प्रतिशत।
पूरा दिन, हर दिन, हम अपवाद से घिरे रहते हैं। सर्वश्रेष्ठ से भी श्रेष्ठ। बद से बदतर। महान शारीरिक कारनामे। सबसे मज़ेदार चुटकुले। सबसे दुखद खबर। सबसे डरावने खतरे। बिना रुके।
आज हमारी जिंदगियाँ घंटीनुमा वक्र के छोरों से आने वाली जानकारी से भरी हैं, क्योंकि मीडिया में उसी को निगाहें मिलती हैं और निगाहें ही पैसा लाती हैं। बस यही है। फिर भी जीवन का बड़ा बहुमत मध्य में रहता है।3

मेरा यह मानना है कि इस अत्यधिक सूचना की बाड़ ने हमें “असाधारण” को नया साधारण मानने में अनुकूलित कर दिया है। और क्योंकि हम सभी बहुत कम ही असाधारण होते हैं, हम अत्यधिक असुरक्षित महसूस करते हैं और “असाधारण” महसूस करने के लिए हमेशा आतुर रहते हैं। तो हम क्षतिपूर्ति करते हैं। हम में से कुछ जल्द-अमीर-होने जैसी तरकीबें पकाते हैं। और कुछ दुनिया के पार सफर करके भूखे बच्चों को बचा कर करते हैं। और कुछ पाठशाला में श्रेष्ठ होकर और हर पुरस्कार जीत कर करते हैं। और कुछ पाठशाला में गोली चला कर करते हैं। और कुछ उस किसी भी चीज़ के साथ यौन-क्रिया करके करते हैं, जो बोलती और सांस लेती है।
आज हमारी संस्कृति में इस तरह की मानसिक उत्पीड़न है, एक भावना कि हमें हमेशा यह सिद्ध करना है कि हम अनोखे हैं, अद्वितीय हैं, हर वक्त असाधारण हैं, चाहे जो भी हो, बस इस अपवाद के लमहे के लगातार हो रही मानवता की बाकी सारी महानता की धारा में बह जाने के लिए।
उदाहरण के लिए, यहाँ एक पाँच मिनट का चलचित्र है और कुछ नहीं बस उन सबसे चौंका देने वाले कारनामों का जो तुम सोच सकते हो:
उन्मादी यह है कि इस चलचित्र में हर इनसान ने, इस पाँच सैक्डं के अविश्वसनीय दृश्य के लिए, कदाचित कई-कई साल लगाए होंगे अपनी कारीगरी का अभ्यास करते हुए साथ ही रिकॉर्डिंग के दर्जनों घंटे बस वो पाँस सैक्डं का सही स्थान पाने के लिए।
फिर भी हमें उन सालों के अभ्यास का पता नहीं लगता। या उन घंटों की हार या खराब हुए चलचित्रों का। हमें पता लगता है बस हर व्यक्ति के सबसे बेहतरीन पलों का- संभवत: उनके पूरे जीवन के।
और फिर हम यह देखते हैं और पलों में इसके बारे में भूल जाते हैं। क्योंकि हम अगली चीज़ पर हैं। और फिर अगली।
प-प-प-पर, अगर मैं विशेष या असाधारण नहीं बनूँगा तो, फायदा ही क्या है?
आज हमारी संस्कृति का यह एक स्वीकारिए भाग है यह विश्वास करना कि हम सब का भाग्य है कुछ सचमुच असाधारण करना। विख्यात लोग बोलते हैं। व्यापार के दिग्गज बोलते हैं। राजनेता बोलते हैं। औपराह भी बोलती है। हम में से हर कोई असाधारण हो सकता है। हम सब महानता के भागीदार हैं।

यह तथ्य कि यह पंक्ति स्वाभाविक तौर से विरोधात्मक है – आखिर कार, अगर हर कोई असाधारण होता, तो परिभाषा स्वरूप, कोई भी असाधारण नहीं होगा – यह ज़्यादातर लोग भूल जाते हैं, और बल्कि यह संदेश खा कर और मांगने लगते हैं। (मतलब, और टैकोज़।)
“सामान्य” होना विफलता की नई परिभाषा बन गया है। सबसे खराब चीज़ जो तुम हो सकते हो वह है झुंड के बीच में होना, घंटीनुमा वक्र के बीच में होना।
मुसीबत यह है कि, सांख्यिकी के हिसाब से, मूलतः हम सब लगभग हर समय उस घंटीनुमा वक्र के बीच में ही हैं, लगभग हर उस चीज़ में जो हम करते हैं। ज़रूर, तुम एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के पुट-पुट गौल्फ के खिलाड़ी होंगे। पर फिर तुम्हें घर जाना है और एक बेकार पिता होना है और सस्ती शराब में ९०% लोगों से जल्दी धुत होना है और रात को बिस्तर पर पेशाब करना है। उससे भी खराब, तुम टाईगर वुड्स हो सकते हो। कोई भी बहुत देर तक असाधारण नहीं रहता।
बहुत सारे लोग सामान्यता को स्वीकार करने से डरते हैं क्योंकि वह मानते हैं कि अगर वह सामान्यता को स्वीकार कर लेंगे, तो वह कभी कुछ हासिल नहीं कर पाएंगे, कभी बेहतर नहीं होंगे, और उनके जीवन का कोई मतलब नहीं रहेगा।
मुझे इस तरह की सोच खतरनाक लगती है। एक बार तुम यह आधार स्वीकार कर लेते हो कि जीवन तभी सार्थक है जब वह सच में विशिष्ट और महान हो, तो तुम मूलतः इस तथ्य को स्वीकार कर रहे हो कि अधिकतम मानव आबादी बेकार और निकम्मी है। और नैतिकता की दृष्टि से, यह अपने आप को एक बहुत ही अपकारी जगह पर रखना है।
पर ज़्यादातर लोगों की सामान्यता को स्वीकार करने की कठिनाई थोड़ी अधिक व्यवहारिक है। उन्हें चिंता है कि, “अगर मैं स्वीकार कर लूँ कि मैं सामान्य हूँ, तो मैं कभी कुछ महान हासिल नहीं कर पाऊँगा। मुझ में अपने आप को बेहतर करने की या कुछ महान करने की उत्तेजना नहीं होगी। अगर मैं उन कुछ में से एक हुआ तो?”
यह, भी, एक पथभ्रष्ट मान्यता है। जो लोग सच में किसी चीज़ में असाधारण बनते हैं वह इसलिए नहीं क्योंकि वह मानते हैं कि वह असाधारण हैं। इसके विपरीत, वह बेहतरीन बनते हैं क्योंकि उनमें बेहतर करने का जुनून होता है। और बेहतर करने का यह जुनून आता है इस अचूक मान्यता से कि, दरअसल, इतने महान नहीं हैं। वह साधारण हैं। वह सामान्य हैं। और यह कि वह इससे बहुत बेहतर हो सकते हैं।
महत्वाकांक्षाओं का यह महान व्यंग्य है। अगर तुम बाकी सब से अधिक समझदार और सफल बनना चाहोगे, तो तुम हमेशा विफलता महसूस करोगे। अगर तुम सर्वाधिक प्रिय और प्रसिद्ध बनना चाहोगे, तो तुम हमेशा अकेला महसूस करोगे। अगर तुम सर्वाधिक शक्तिमान और प्रशंसनीय बनना चाहोगे, तो तुम हमेशा कमज़ोर और असमर्थ महसूस करोगे।
यह सब “हर व्यक्ति असाधारण बन सकता है और महानता पा सकता है” जैसी चीज़ मूलतः अहम से उपभोग पाना है। यह तुम्हें बकवास बेच रहें हैं कि तुम कुछ पलों के लिए अच्छा महसूस करो और हफ्ते से बिना अपने आप को अपने घनाकार में फांसी दिए पार निकल आओ। यह एक संदेश है जिसका स्वाद अंदर जाते समय तो अच्छा है, पर दरअसल, यह व्यर्थ उष है जो तुम्हें मानसिक तौर से मोटा और फूला हुआ बना देता है, लौकिक तौर से तुम्हारे दिल और दिमाग के लिए बिग मैक।
मानसिक स्वास्थ्य की टिकट, शारीरिक स्वास्थ्य की तरह, तरकारी खाने से आता है – अर्थात, जीवन की फीकी और नीरस सच्चाइयों को स्वीकार करके: “तुम असल में चीजों की भव्य योजना में काफी सामान्य हो” की एक हलकी सलाद और “तुम्हारे अधिकतम जीवन साधारण होगा” की भाप से पकी थोड़ी बर्रौक्ली। यह पहले खराब लगेगी। बहुत खराब। तुम इसे खाने से बचोगे।
एक बार निगल ली, तो तुम्हारा शरीर अधिक समर्थ और जीवंत उठेगा। आखिरकार, हमेशा कुछ अद्भुत बनने का वह लगातार दबाव, अगली सबसे बड़ी चीज़ होना, तुम्हारे कंधे से हट जाएगा। अपर्याप्त होने का तनाव और चिंता छितर जाएगी। और यह ज्ञान और तुम्हारे अपने नीरस अस्तित्व की स्वीकृति तुम्हें दरअसल वह पाने के लिए मुक्त कर देगी जो तुम बिना निर्णय का पात्र बने और बिना भारी अपेक्षाओं के सच में पाना चाहते हो।
तुम्हारी जीवन के मूलभूत अनुभवों का अभिमूल्यन बढ़ेगा। तुम अपने आप को एक नए, स्वास्थ्यवर्धक तरीके से, आंकना सीखोगे: साधारण दोस्ती के सुख, कुछ बनाना, किसी व्यक्ति की मदद करना, एक अच्छी किताब पढ़ना, उनके साथ हँसना जिनकी तुम परवाह करते हो।
उबाऊ लगता है, नहीं क्या? ऐसा इसलिए है क्योंकि यह चीज़ें सामान्य हैं। पर शायद यह सामान्य किसी कारण से हैं। क्योंकि यह वह हैं जिनसे असल में फर्क पड़ता है।
1. यह वक्र हमेशा सममित नहीं होते और उंचाई और चौड़ाई में अलग होते हैं, पर इनकी संकल्पना यही रहती है।
2. हाँ, कोब ब्रायंट से भी पुष्ट। हाँ, मैंने कह दिया।
3. ऐरिक हौफर की एक बहतरीन पंकति है जो कहती है, "इतिहास का खेल अधिकतर सर्वश्रेष्ठ और बदतर के द्वारा बाच में अधिकांश के सर के ऊपर से खेला जाता है।"
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